Saturday, February 5, 2011

मैं चाहती हु के तू हो ...
क्यूंकि जब तुम होते  हो तो यह दुनिया नहीं होती ....
और फिर किसी  की मुझे परवाह नहीं होती ...
खुले आसमान में उडते पंछी की तरह ....
इक आज़ादी का एहसास होता है ...
बंधन मुक्त होते हैं  ...जब तुममे मुघ्द होते हैं ..
किसीकी नज़रों के  डर से नज़र झुकानी  नहीं पड़ती...
कोई झूठी इज्ज़त मुझे कमानी नहीं पड़ती ...
कोई सवाल नहीं होता कोई जवाब नहीं होता ...
आखों में अधूरा कोई ख्वाब नहीं होता ....
जब तुम होते हो ...
तोह कुछ अधूरा नहीं होता ...
मेरा बचपन लौट आता है ...
लगता है क तेरे मज़बूत कन्धों पे बैठ कर...
सारी दुनिया घूम लूंगी....
और बजाउंगी तालिया...
लोगों  का तमाशा देख कर....
और फिर तुम दिला दोगे मुझे वोह रंग बिरंगे गुबारे...
और एक गुड़िया ,और एक गुड्डा...
मैं अपनी गुड़िया सजाती रहूंगी शाम ढलने तक..
रात होने का डर नहीं होगा ...
क्यूँकी तुम होगे वहीँ पर..
मैं  गुड्डे और गुड़िया को सुला दूंगी
इक नया सपना सजा दूंगी...
और तुम डाल दोगे मुझे झूलने में...
लोरी सुनायोगे वोह परियों वाली...
और मुझको ही इक परी बना दोगे...
और चूम लोगे धीरे से माथा मेरा
फिर  तुम्हारा अंगूठा पकड़ के मैं...
मैं चैन से  सो जाउंगी .... 
फिर आखों में कोई ख्वाब ना  होगा
कोई सवाल जवाब ना होगा ...
सिर्फ तुम होगे और तुम होगे..
फिर मैं  भी ना हुंगी...
बहुत खूब होगा...
पर इक बात का अफ़सोस है ...
के तुम नहीं हो ...उफ़ तुम नहीं हो ...
बस दुनिया ही दुनिया है ....
आजादी नहीं... है ...बचपन नहीं है..
ना गुड्डे गुड्डियों का कोई खेल है ...
उदास बड़ी हु...अकेली पडी हु...
किसी अंगूठे का भी सहारा नहीं है...
ख़्वाबों से भरी आँखें है बस..
ना परी है ना नींद आखों में ..
शाम ढल गई है...रात हो गई है...
डर लग रहा है....
क्यूँकी तुम नहीं हो ...
क्यूँ तुम नहीं हो...
उफ़ तुम नहीं हो......